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हम एक ऐसे कल्पनालोक में हैं, जहां कानून और पुलिस की कोई अहमियत नहीं है। विलेन हत्या करने के बावजूद बच निकल सकता है। वह चाहे जिस औरत के साथ सो सकता है और चाहे जिसे ठिकाने लगा सकता है।
आखिर वह एक टॉप कंस्ट्रक्शन बिल्डर जो ठहरा। ऐसे माहौल में, आप इस बात से सहमत होंगे, गलत को सही करने का एकमात्र तरीका है नए सिरे से शुरुआत यानी पुनर्जन्म।
यह फिल्म एक क्षेत्रीय प्रेम कहानी भी है। लिहाजा हम जानते हैं कि इसमें रोमांस की प्रचलित परिपाटी ही होगी। हीरो हीरोइन के घर के बाहर खड़े होकर उससे बात करता है, वह अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे उसे सुन सकती है।
वह उसका पड़ोसी है। दो साल तक उसे इंतजार कराने के बाद लड़की आखिरकार यह कबूल कर लेती है कि वह भी उसे चाहती है।
हीरो के लिए यह बहुत अच्छी खबर होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि विलेन की नजर भी उसी लड़की पर टिकी है। वह फौरन हीरो की पिटाई करता है और चाकुओं से गोदकर उसे मार डालता है।
जाहिर है, हीरो के साथ अन्याय हुआ है। भगवान भी उस पर ज्यादा मेहरबान नहीं रहे। यह भी जाहिर था कि वह इस जन्म में अपने कर्मों का खाता पूरा नहीं कर पाया था।
उसका पुनर्जन्म होता है एक छोटी-सी मक्खी के रूप में। यदि आप अफरातफरी मचा देना चाहते हैं और बदला लेना चाहते हैं तो एक छोटी-सी मक्खी होना शायद इतना बुरा भी नहीं है!
“एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है” – नाना पाटेकर की फिल्म यशवंत का यह डायलॉग फिल्म से भी ज्यादा लोकप्रिय साबित हुआ था। यह फिल्म भी कमखुदा नहीं है। यह सीधे-सीधे एक मक्खी के बारे में है, जो यह घोषणा करती है कि मैं तुझे जान से मार दूंगी।
निश्चित ही, एक छोटी-सी मक्खी द्वारा एक कद्दावर विलेन से बदला लेना बहुत मनोरंजक हो सकता है। हम इस चैम्पियन मक्खी का समर्थन करते हैं, जो कान के झुमकों से जोर-आजमाइश कर बॉडी बनाती है, कूल गॉगल्स पहनती है, और कोई भी कमीना विलेन उसे मार नहीं सकता है।
यह वाकई एक मजेदार आइडिया है। हम चाहते हैं कि मक्खी की शानदार जीत हो। दर्शक उसके समर्थन में खूब शोर मचाएं और सीटियां बजाएं। लेकिन यह मनबहलाव कितनी देर तक चल सकता है और हम कितनी देर तक इस कहानी को बर्दाश्त कर सकते हैं, यह एक अलग मसला है।
इस फिल्म को लेकर जो हाइप है, उसका एक कारण तो यही है कि साउथ में यह पहले ही सुपरहिट हो चुकी है। अतिरंजनाओं से ज्यादा सफल और कुछ नहीं हो सकता है और यह लाउडनेस ही साउथ की अनेक फिल्मों की कामयाबी की कुंजी रही है।
फिल्म की लंबाई से भी मूवी टिकट की कीमत आंकी जाती है। यदि एक टिकट के सहारे एसी में तीन घंटे बिता लिए, तो समझो पैसा वसूल।
आमतौर पर जब साउथ की इन्हीं सफल फिल्मों की रीमेक बॉलीवुड के एक्शन स्टार्स के साथ हिंदी में बनाई जाती है, तो फिल्म शुरुआती सप्ताहांत में ही करोड़ों कमा लेती है।
खैर, मक्खी रीमेक नहीं है, उसे केवल तेलुगु ओरिजिनल से हिंदी में डब किया गया है। लिहाजा दक्षिण के सुपर हीरोज की जगह लेने के लिए यहां सलमान, अक्षय या अजय देवगन (बॉडीगार्ड, रेडी, राउडी राठौर, सिंघम) की जरूरत नहीं है।
इसकी वजह यही है कि इस फिल्म की असली स्टार तो मक्खी है! और यही समस्या भी है। इस फिल्म को बड़े बजट के साथ नए सिरे से शूट करते हुए फिर से रिलीज करने की सख्त जरूरत थी।
अपने ओरिजिनल स्वरूप में तो यह बड़ी घिसी-पिटी और नीरस ही लगती है। एक समय के बाद हमें समझ नहीं आता है मक्खी विलेन को ज्यादा परेशान कर रही है या फिर हमें।
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