घर का नौकर लापता है। उसकी गुमशुदगी को तीन से चार दिन हो चुके हैं। लेकिन परिवार पुलिस में रिपोर्ट नहीं करता। पुलिस वाले घर आकर पति-पत्नी को परेशान करते हैं। इस केस का नाता उनकी बेटी से है।
आखिरकार परिवार को नौकर की लाश घर की अटारी पर मिलती है। यदि हमें इससे ज्यादा कुछ पता न हो, तो हम यही समझेंगे कि यह फिल्म आरुषि हत्याकांड पर आधारित है। शायद ऐसा ही है।
लेकिन इससे भी जरूरी बात यह है कि यह रामगोपाल वर्मा की फिल्म है। आजकल किसी फिल्म के रामगोपाल वर्मा की फिल्म होने के तीन मायने होते हैं : कैमरे के घुमावदार कोण, बहरा कर देने वाली ध्वनियां और कहानी का अभाव।
शायद एक हॉरर फिल्म बनाने के लिए ये तीन चीजें ही काफी हैं। लिहाजा हम इसकी ज्यादा परवाह नहीं करते। थ्री-डी चश्मों की मदद से हम सीलिंग फैन से, मूर्तियों के पीछे से, और कुर्सियों के नीचे से इस भुतहे घर को देखते हैं।
एक छोटा-सा बच्चा है, जिस पर बुरी आत्माओं की छाया है। फिल्म कहती है कि भूत कुछ खास घरों को चुनते हैं। यह घर उन्हीं में से एक है। यह एक डुप्लेक्स बंगला है। जबकि वर्मा की ही फिल्म भूत (2003) में एक अपार्टमेंट दिखाया गया है, जो आपके-हमारे घरों जैसा ही दिखता था और उसकी चूं-चर्र करने वाली पुरानी लिफ्ट उसके मुख्य किरदारों में से एक थी।
भूत को इसलिए एक मास्टरपीस माना चाहिए, क्योंकि वह भूतों में भरोसा न करने वाले लोगों को भी डरा सकती थी। वह हमारी अपनी जिंदगी की कहानी जान पड़ती थी। इसके विपरीत रामसे ब्रदर्स नुमा हॉरर फिल्में मुख्यत: मालियों और वीरान हवेलियों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती थीं। लेकिन भूत रिटर्न्स में भूत जैसी कोई बात नहीं है।
यदि हम वर्मा की फिल्म सत्या याद करें तो हम पाएंगे कि उसमें गुंडे शब्बो नामक एक वेश्या के बारे में बातें करते रहते थे, लेकिन उसे कभी परदे पर दिखाया नहीं गया था।
इस फिल्म में भूत का नाम शब्बो ही है और हम उसे भी परदे पर नहीं देख पाते हैं। हमें घर दिखाया जाता है। छोटी लड़की दिखाई जाती है। कैमरा एक और एंगल लेकर घूम जाता है। साउंड हमारी खोपड़ी झन्ना देता है।
यही सीक्वेंस फिर दोहराया जाता है। हम इससे होकर गुजरते रहते हैं। और आखिरकार हम खुद से यह सवाल पूछने लगते हैं कि क्या वाकई हम यह फिल्म देखकर डर रहे हैं? जवाब है - नहीं। लेकिन रुकिए, हमारे आसपास के दर्शक तो हंस रहे हैं।
तो शायद यह एक अच्छी-खासी कॉमेडी होनी चाहिए। अफसोस की बात है कि इस फिल्म के निर्देशक की पिछली कई फिल्मों का यही अनचाहा नतीजा रहा है। यह फिल्म भी अपवाद नहीं है।
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